Chandra Grahan Katha: क्यों लगता है चंद्रग्रहण? जानिए ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा

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Chandra Grahan Katha

Chandra Grahan Katha: चंद्रग्रहण की घटना धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी उतनी ही महत्वपूर्ण मानी जाती है जितनी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से। साल 2025 का आखिरी चंद्रग्रहण आज यानि 7 सितंबर को लगने जा रहा है और यह ग्रहण भारत में भी दिखेगा। भारतीय समय के अनुसार चंद्रग्रहण की शुरुआत रात्रि 9 बजकर 58 मिनट पर होगी। इस दौरान कई सावधानियां बरतने की सलाह धार्मिक जानकारों के द्वारा दी जाती हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कि, चंद्रग्रहण लगने का धार्मिक कारण क्या है और इससे जुड़ी राहु-केतु की पौराणिक कथा के बारे में।

चंद्रग्रहण 

चंद्रग्रहण खगोलीय दृष्टि से तब लगता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। वहीं धार्मिक दृष्टि से इसका कारण राहु और केतु को माना जाता है। इससे जुड़ी कथा स्कंद पुराण के अवंति खंड में दी गई है। इस कथा में बताया गया है कि सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण का दंश देने वाले राहु-केतु का जन्म उज्जैन नगरी में हुआ था। आइए अब जानते हैं चंद्रग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा।

चंद्रग्रहण से जुड़ी कथा 

स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार देवताओं और दानवों ने समुद्र में छुपे कीमती खजाने को पाने के लिए समुद्रमंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला तो भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत देवताओं को पिलाना शुरू कर दिया। यह बात स्वरभानु नाम के एक राक्षस को पता लग गई और वो देवताओं का रूप धारण कर देवताओं की कतार में बैठ गया। इसके बाद स्वरभानु अमृत का पान करने लगा। यह बात सूर्य और चंद्रमा को पता लगी तो उन्होंने मोहिनी रूप धारण किए हुए विष्णु को इसके बारे में बता दिया।

यह जानकर भगवान विष्णु क्रोध में आ गए और उन्होंने अपने चक्र से स्वरभानु के धड़ को सिर से अलग कर दिया। क्योंकि स्वरभानु अमृतपान कर चुका था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई। स्वरभानु के सिर को राहु कहा जाता है और धड़ को केतु। कथा के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा ने स्वरभानु यानि राहु-केतु के भेद को खोला था इसलिए राहु केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगाते हैं।

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